नेपाली नेताओं का विरोध बंद करे, शासक नहीं शासन को बदलने का
प्रयत्नको करें...
#शासकनहीं_शासनको_बदलें
राज्य व्यवस्था में यह कहना बिलकुल ही गलत है कि किसी एक व्यक्तिद्वारा पुरे शासन सत्ता संचालन होती है | वह भी खासकर लोकतान्त्रिक राज्य व्यवस्था में |
लोकतन्त्र में जन निर्वाचित संसद और सरकार रहती है |विधी और विधान से राज्यसत्ता चलती है | जनता की अभिमत से बिधी एवं विधान बनती है | अत: कोई एक व्यक्ति विधी को परै रखकर शासन-सत्ता नहीं चला सकते | आजके यूग में हिटलरी शासन लोगों पर लाद नहीं सकते | लोकतन्त्र में प्रधानमंत्री स्वेच्छाचारी हो जाय, अराजक बन जाय, गैर-कानूनी हर्कत पर उतारू हो जाय तो विधी विधान के माध्यम से उनपर रोक लगा सकते हैं | उन्हें पदमुक्त कर कारबाही चला सकते हैं | परंतु राज्य में विधी विधान पर आपका नियन्त्रण नहीं होना दुसरी बात है |
आजकल केपी ओलीको दिखाकर मधेशी जनता को दिगभ्रमित किया जा रहा है | यह सरासर गलत हैं | हर शासक चाहता है उनका देश और देशपर उनका शासन कायम रहे | यह ओली भी चाहेगा, देउवा और प्रचण्ड भी चाहेगा, हर एक नेपाली लोग चाहेगा |
नेपाली राज में मधेशियों के लिए हर एक नेपाली शासक समान है | गिरिजा कोईराला हों या उनके गृहमंत्री कृष्ण सिटौला, सुशील कोइराला हों या उनके गृहमंत्री बामदेव, केपी ओली हों या उनके गृहमंत्री शक्ति वस्नेत हर शासक नें मधेशियों का खुन पिया है | हर एक नें हमारे वेटियों को विधवा, वच्चों को यतिम और बुढ़े माँ-बाप को बेसहारा बनाया है | फिर शासकों में भिन्नता की यह दीखावा कैसी ? सुशीलजी को वोट देने केपी ओली को गाली दो और प्रचण्ड को प्रधानमंत्री बनाने केपी ओली को तानाशाही बता दो, यह कैसा खेल है ? मधेशी जनताको वेवकूफ बनाने की काम शीघ्र बन्द होनी चाहिए |
सभी जानते हैं :
केवल दो लाख वेलायती लोग ६० करोड़ हिन्दुस्तानियों पर शासन चला रहे थे | भारतीय को ही सैना, पुलिस बनाकर उनपर उपनिवेश लादे हुए थे | भारतीय जनता पर क्या लौर्ड कर्जन, हेसिंगटस, जनरल डायर, अक्टरलोनी ही उपनिवेश चला रहे थे ? बिलकुल ही नहीं | ६० करोड़ पर दो लाख वेलायतियों का शासन टिक ही नहीं सकता था | परंतु सैकड़ों वर्ष शासन कायम रहा, टिका रहा, क्यूँ ? उपनिवेश काल में शासक बदलते रहे फिर भी शासन चलती ही रही, क्यूँ ?
वास्तव में शासन व्यक्ति से नहीं बल्कि संविधान, कानून और संरचना के बूनियाद पर कायम रहती है | जैसा संविधान, वैसा ही कानून और उस अनुकुल के शासकीय संरचना से ही किसी भी मुल्क की शासन चलती है |
यह वास्तविकता हमें जानना होगा |
वेलायती उपनिवेश में भारतीय कानून और संरचना का निर्माता अँग्रेज थे | यही कारण था कि करोडौं भारतीय पर उन्हीं के सहारे वेलायती उपनिवेश को कायम रखने में अँग्रेजी शासक सफल हो रहे थे |
मधेश पर आज ठीक वैसा ही है | नेपाली शासक को बदल देने से मधेश पर सैकड़ों वर्षों से कायम रहे उपनिवेश खत्म नहीं हो जाएगी | ओलीजी के जगह प्रचण्डजी आनेसे या ओलीको हटाकर देउवाजीको ले आने से मधेशियों पर चल रहे उपनिवेश, शोषण, दमन, उत्पीड़न, अत्याचार रूक नहीं जाएंगे | क्यूँकी शासक समस्या नहीं है | बल्कि हमारी मुख्य समस्या नेपाली औपनिवेशिक शासन है | नेपाली उपनिवेशद्वारा बनाए गए नेपाली संविधान, कानून एवं संरचना प्रमुख समस्या है | ईस यथार्थ को स्वीकार कर इसे बदलना होगा | नेपाली उपनिवेश को खत्म करके मधेशियों का अपना शासन बनाना होगा |
नेपाली साम्राज्य को अन्त कर स्वतन्त्र मधेश देश निर्माण करना होगा |
गान्धीजी नें भी शासक बदलते रहते तो वेलायती उपनिवेश खत्म नहीं हो जाता | वेलायतियों के संविधान और शासन को मानकर संघीयता माँग लेने से गुलामी अन्त नहीं हो जाता | उन्हों नें सोचा, सोच विचार करके ही तय किया कि वेलायतियों को भारतीय उपर कर रहे शासन छोड़ना पड़ेगा | इसके लिए स्वतंत्रता संग्राम/आन्दोलन उठाया | "भारत छोड़ो" का बुलन्द आवाज़ पुरे हिन्दुस्तान में फैलाया | और कठिन संघर्ष के बाद गुलाम भारतको आजाद़ भारत बनाया | हमें भी वही करना होगा | राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री कोई भी बने परंतु संविधान, कानून और संरचना मधेश बासियों का होना पड़ेगा | सैना, पुलिस, कर्मचारी और राज्य संयन्त्र पर नियन्त्रण मधेशियों का रहना पड़ेगा | तभी मधेश और मधेश बासियों का कल्याण होगा | अस्तित्व, आत्म-सम्मान और भविष्य सुरक्षित एवं सम्मानित रहेगा |
इसलिए अब मांगने का नहीं, खुद बनाने का काम करें | गुलामी कायम रखने का नहीं, आजाद़ी लानेका प्रयत्न करें | शासक बदलने का नहीं, शासन बदलने की दिशा में कार्य करें | निरन्तर बढ़ें, बढ़ते ही रहे...
"अबकी बार एक ही मांग, जनमत संग्रह का हो ऐलान !
नेपाली उपनिवेश अन्त हो, मधेश देश स्वतन्त्र हो !!"
प्रयत्नको करें...
#शासकनहीं_शासनको_बदलें
राज्य व्यवस्था में यह कहना बिलकुल ही गलत है कि किसी एक व्यक्तिद्वारा पुरे शासन सत्ता संचालन होती है | वह भी खासकर लोकतान्त्रिक राज्य व्यवस्था में |
लोकतन्त्र में जन निर्वाचित संसद और सरकार रहती है |विधी और विधान से राज्यसत्ता चलती है | जनता की अभिमत से बिधी एवं विधान बनती है | अत: कोई एक व्यक्ति विधी को परै रखकर शासन-सत्ता नहीं चला सकते | आजके यूग में हिटलरी शासन लोगों पर लाद नहीं सकते | लोकतन्त्र में प्रधानमंत्री स्वेच्छाचारी हो जाय, अराजक बन जाय, गैर-कानूनी हर्कत पर उतारू हो जाय तो विधी विधान के माध्यम से उनपर रोक लगा सकते हैं | उन्हें पदमुक्त कर कारबाही चला सकते हैं | परंतु राज्य में विधी विधान पर आपका नियन्त्रण नहीं होना दुसरी बात है |
आजकल केपी ओलीको दिखाकर मधेशी जनता को दिगभ्रमित किया जा रहा है | यह सरासर गलत हैं | हर शासक चाहता है उनका देश और देशपर उनका शासन कायम रहे | यह ओली भी चाहेगा, देउवा और प्रचण्ड भी चाहेगा, हर एक नेपाली लोग चाहेगा |
नेपाली राज में मधेशियों के लिए हर एक नेपाली शासक समान है | गिरिजा कोईराला हों या उनके गृहमंत्री कृष्ण सिटौला, सुशील कोइराला हों या उनके गृहमंत्री बामदेव, केपी ओली हों या उनके गृहमंत्री शक्ति वस्नेत हर शासक नें मधेशियों का खुन पिया है | हर एक नें हमारे वेटियों को विधवा, वच्चों को यतिम और बुढ़े माँ-बाप को बेसहारा बनाया है | फिर शासकों में भिन्नता की यह दीखावा कैसी ? सुशीलजी को वोट देने केपी ओली को गाली दो और प्रचण्ड को प्रधानमंत्री बनाने केपी ओली को तानाशाही बता दो, यह कैसा खेल है ? मधेशी जनताको वेवकूफ बनाने की काम शीघ्र बन्द होनी चाहिए |
सभी जानते हैं :
केवल दो लाख वेलायती लोग ६० करोड़ हिन्दुस्तानियों पर शासन चला रहे थे | भारतीय को ही सैना, पुलिस बनाकर उनपर उपनिवेश लादे हुए थे | भारतीय जनता पर क्या लौर्ड कर्जन, हेसिंगटस, जनरल डायर, अक्टरलोनी ही उपनिवेश चला रहे थे ? बिलकुल ही नहीं | ६० करोड़ पर दो लाख वेलायतियों का शासन टिक ही नहीं सकता था | परंतु सैकड़ों वर्ष शासन कायम रहा, टिका रहा, क्यूँ ? उपनिवेश काल में शासक बदलते रहे फिर भी शासन चलती ही रही, क्यूँ ?
वास्तव में शासन व्यक्ति से नहीं बल्कि संविधान, कानून और संरचना के बूनियाद पर कायम रहती है | जैसा संविधान, वैसा ही कानून और उस अनुकुल के शासकीय संरचना से ही किसी भी मुल्क की शासन चलती है |
यह वास्तविकता हमें जानना होगा |
वेलायती उपनिवेश में भारतीय कानून और संरचना का निर्माता अँग्रेज थे | यही कारण था कि करोडौं भारतीय पर उन्हीं के सहारे वेलायती उपनिवेश को कायम रखने में अँग्रेजी शासक सफल हो रहे थे |
मधेश पर आज ठीक वैसा ही है | नेपाली शासक को बदल देने से मधेश पर सैकड़ों वर्षों से कायम रहे उपनिवेश खत्म नहीं हो जाएगी | ओलीजी के जगह प्रचण्डजी आनेसे या ओलीको हटाकर देउवाजीको ले आने से मधेशियों पर चल रहे उपनिवेश, शोषण, दमन, उत्पीड़न, अत्याचार रूक नहीं जाएंगे | क्यूँकी शासक समस्या नहीं है | बल्कि हमारी मुख्य समस्या नेपाली औपनिवेशिक शासन है | नेपाली उपनिवेशद्वारा बनाए गए नेपाली संविधान, कानून एवं संरचना प्रमुख समस्या है | ईस यथार्थ को स्वीकार कर इसे बदलना होगा | नेपाली उपनिवेश को खत्म करके मधेशियों का अपना शासन बनाना होगा |
नेपाली साम्राज्य को अन्त कर स्वतन्त्र मधेश देश निर्माण करना होगा |
गान्धीजी नें भी शासक बदलते रहते तो वेलायती उपनिवेश खत्म नहीं हो जाता | वेलायतियों के संविधान और शासन को मानकर संघीयता माँग लेने से गुलामी अन्त नहीं हो जाता | उन्हों नें सोचा, सोच विचार करके ही तय किया कि वेलायतियों को भारतीय उपर कर रहे शासन छोड़ना पड़ेगा | इसके लिए स्वतंत्रता संग्राम/आन्दोलन उठाया | "भारत छोड़ो" का बुलन्द आवाज़ पुरे हिन्दुस्तान में फैलाया | और कठिन संघर्ष के बाद गुलाम भारतको आजाद़ भारत बनाया | हमें भी वही करना होगा | राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री कोई भी बने परंतु संविधान, कानून और संरचना मधेश बासियों का होना पड़ेगा | सैना, पुलिस, कर्मचारी और राज्य संयन्त्र पर नियन्त्रण मधेशियों का रहना पड़ेगा | तभी मधेश और मधेश बासियों का कल्याण होगा | अस्तित्व, आत्म-सम्मान और भविष्य सुरक्षित एवं सम्मानित रहेगा |
इसलिए अब मांगने का नहीं, खुद बनाने का काम करें | गुलामी कायम रखने का नहीं, आजाद़ी लानेका प्रयत्न करें | शासक बदलने का नहीं, शासन बदलने की दिशा में कार्य करें | निरन्तर बढ़ें, बढ़ते ही रहे...
"अबकी बार एक ही मांग, जनमत संग्रह का हो ऐलान !
नेपाली उपनिवेश अन्त हो, मधेश देश स्वतन्त्र हो !!"
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