शिया-सुन्नी विवाद की जड़ क्या है?

लखनऊ में एक साथ नमाज पढ़ते शिया और सुन्नी.
दुनिया में शिया और सुन्नी के बीच कहीं भी संघर्ष हो उसकी आंच अक्सर लखनऊ तक पहुंच ही जाती है. यही नहीं तहज़ीब के इस शहर में ये दोनों समुदाय अक़्सर अन्य मसलों पर भी झगड़ते रहते हैं.
दरअसल दुनिया भर में शिया मुसलमानों की तादाद कुल संख्या का महज़ 15 फ़ीसदी ही है. लेकिन लखनऊ ऐसा शहर है जहां भारत में सबसे अधिक शिया मुसलमान रहते हैं.
शिया लोगों की ज़्यादा तादाद को भी कई बार इस फ़साद की वजह बताया जाता है, क्योंकि अन्य जगहों पर संख्या में कम होने के कारण वो संघर्ष नहीं मोल लेते. लखनऊ में तो स्थिति कभी पथराव और फ़ायरिंग तक पहुंच जाती है. प्रशासन को क़ानून व्यवस्था बनाने के लिए सख़्त क़दम भी उठाने पड़ते हैं.
हालांकि शिया सुन्नी का विवाद का मज़हबी है बावजूद इसके कि दोनों पंथ कुरान और शरियत में विश्वास रखते हैं. दोनों के बीच ये लड़ाई पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के बाद से ही चली आ रही है.
पैगंबर मुहम्मद के बाद शिया हज़रत अली इब्न अबी तालिब और सुन्नी अबू बक़र को अपना अपना ख़लीफ़ा मानते आ रहे हैं.
लखनऊ का शाहनजफ इमामबाड़ा.
जहां तक संघर्ष की वजह का सवाल है तो लखनऊ में सुन्नी धर्मगुरु मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली कहते हैं कि शिया पैगंबर के लिए ग़लत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. मजलिसों में उन्हें बुरा भला कहते हैं. उनके मुताबिक विवाद इसीलिए बढ़ते हैं.
फिरंगी महली कहते हैं कि सभी धर्म और पंथ शांति की ही बात करते हैं बावजूद इसके लड़ाई होती है, जो कि नहीं होनी चाहिए.
वहीं शिया धर्मगुरु मौलाना क़ल्बे सादिक़ कहते हैं कि शिया ख़ुद को शांतिप्रिय समझते हैं. कई बार ये ग़लतफ़हमी होती है कि सुन्नी कट्टर हैं, जबकि ऐसा नहीं है. उनके मुताबिक़ कई बार ऐसी ही नासमझी फ़साद की वजह बन जाती है.
क़ल्बे सादिक़ के मुताबिक़ दोनों पंथों में महज़ तीन फ़ीसद लोग ऐसी सोच रखने वाले हैं. लेकिन यही लोग कई बार बड़े झगड़े करा देते हैं.
लखनऊ में एक साथ बकरीद की नमाज पढ़ने के बाद बैठे शिया और सुन्नी.
हालांकि धर्मगुरुओं का कहना है कि अब लोगों की सोच बदल रही है. जो कुछ भी ग़लतफ़हमियां थीं वो अब दूर हो रही हैं. आज के युवा इन बातों को भुलाकर अमन और तरक़्क़ीपसंद जीवन जीना चाहते हैं, जहां ऐसे झगड़ों के लिए न तो जगह है और न ही समय.
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