अफ़ग़ान राष्ट्रपति क्या चाहते हैं भारत से?

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी दो दिनों के भारत दौरे पर आ रहे हैं. वो 14 और 15 सिंतबर को भारत दौरे पर होंगे.
दौरे के दौरान वे भारत के साथ फिर से अहम रक्षा सहयोग की बात करेंगे.
सालों से पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई समेत कई अफ़ग़ान नेता और अधिकारी भारत से सैन्य संबंधी उपकरणों की मांग करते आए हैं.
अफ़ग़ानिस्तान की फ़ौज को तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए और अधिक सैन्य उपकरणों की जरूरत है. पिछले कुछ सालों में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के कुछ हिस्सों में अपना दखल बढ़ाने में कामयाबी हासिल की है.
इसके अलावा देश की सुरक्षा पर इस्लामिक स्टेट का ख़तरा भी मंडरा रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान को ख़ास तौर पर अपनी एयर फोर्स को मजबूत बनाने की जरूरत है.
हामिद करज़ईImage copyrightAP
हालांकि भारत ने पहले से ही अफ़ग़ानिस्तान को चार हैलिकॉप्टर दे रखे हैं लेकिन अफ़ग़ान फ़ौज को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए और उपकरणों की जरूरत है.
लेकिन भारत कई कारणों से अफ़ग़ानिस्तान के अनुरोध को अब तक टालता रहा है.
भारत अब तक अफ़ग़ानिस्तान में अपनी छवि सॉफ्ट पावर के तौर पर बनाए रखने की नीति पर चल रहा है.
भारत ने आंतरिक युद्ध झेल रहे इस देश में मुख्य तौर पर अपनी भूमिका अधारभूत संरचना और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के विकास तक सीमित रखी है.
पश्चिमी देशों के सैन्य गठबंधन में शामिल होने के बजाए भारत ने साल 2001 से अफ़ग़ानिस्तान में सड़क, स्कूल, पावर लाइन्स, संसद की इमारत और बांध बनाने जैसे कामों को अंजाम दिया है.
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को किसी भी तरह की सैन्य मदद देने से दूरी बनाए रखी है. वह अबतक केवल अफ़ग़ान फ़ौज के अफसरों को भारत में प्रशिक्षिण देता रहा है.
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विशेषज्ञों का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान और भारत का संबंध सिर्फ़ दो देशों के बीच का मसला नहीं है. यह उससे कहीं बढ़कर है.
पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान में अपना दखल बना रखा है और वो सुरक्षा संबंधी मामलों में भारत की भूमिका का जमकर विरोध करता है.
भारत पाकिस्तान को नाराज करने से बचता रहा है. हो सकता है कि अमरीका यह चाहता हो कि भारत पाकिस्तान को ज्यादा परेशान न करे.
नवाज़ शरीफ़ और अशरफ़ ग़नीImage copyrightARG
भारत और अफ़ग़ानिस्तान दोनों ही देशों में मीडिया को इस रवैए में बदलाव की संभावनाएं नज़र आ रही हैं लेकिन देखने ये होगा कि भारत इस बार क्या रूख अपनाता है.
हालांकि अब अफ़ग़ानिस्तान के सुरक्षा मामलों में और सहयोग देने के लिए भारत को अमरीका का कहीं अधिक समर्थन हासिल है.
हाल तक अमरीका, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और चीन का एक समूह तालिबान को शांति वार्ता में शामिल करने की कोशिश कर रहा था. लेकिन यह उनकी यह कोशिश कामयाब नही हो पाई.
पाकिस्तान इस पहल का एक अहम सदस्य था. लेकिन जानकारों का मानना है कि अमरीका और पाकिस्तान का मनमुटाव इस नाकामयाबी की एक वजह बनी.
वेबसाइट 'द वायर' में छपे एक लेख के अनुसार, "कुछ महीने पहले तक अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका को लेकर अमरीका सजग था लेकिन इस साल की शुरुआत से जब से अमरीका और पाकिस्तान के बीच तल्खी बढ़नी शुरू हुई, ये परिस्थितियां बदलनी शुरू हो गई हैं."
तब से अमरीका ने भारत की अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ी हुई भूमिका को समर्थन देना शुरू कर दिया.
जॉन निकोलसनImage copyrightGETTY
Image captionजॉन निकोलसन
नैटो के रिसॉलुट सपोर्ट मिशन और अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी फ़ौज के कमांडर जनरल जॉन निकोलसन ने हाल में अपने दौरे के दौरान कहा है कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान को और हैलिकॉप्टर देने चाहिए.
पाकिस्तान के अख़बार डॉन के मुताबिक़ पाकिस्तान ने इस पर अपनी नाखुशी जाहिर करते हुए चेतावनी दी- "इस तरह का सहयोग पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं होना चाहिए."
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत चरमपंथियों और अपराधियों के प्रत्यर्पण को लेकर अफ़ग़ानिस्तान से होने वाले समझौते पर सहमति बनने की उम्मीद कर रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, "कई चरमपंथी समूह अफ़ग़ान-पाक सीमा पर सक्रिय हैं, इसलिए अफ़ग़ानिस्तान के साथ समझौता अहम होगा."
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