बीस-बाईस की उम्र में लोग बिंदास, बेफिक्र होते हैं. सोचते हैं कि ये उनके मौज-मस्ती के दिन हैं.
लेकिन, क्या ये ख़याल सही है? क्या हमें अपनी बीस-पच्चीस की उम्र में किसी बात की फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं?
बीबीसी ने सवाल-जवाब वाली वेबसाइट क्वोरा पर इन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश की. लोगों से ये पूछा कि उम्र के बीस के दशक में हमें ज़िंदगी की किन मुश्किलों का सामना करने की तैयारी करनी चाहिए.
वेबसाइट क्वोरा का इस्तेमाल करने वाले मैक्स लुकोमिंस्की, स्लाइसप्लानर नाम की कंपनी के चीफ़ मार्केटिंग अफसर हैं. वे कहते हैं कि बीस की उम्र में यह सीखना सबसे ज़रूरी है कि, 'ऑनलाइन दोस्त नक़ली होते हैं'.
मैक्स लिखते हैं कि ज़्यादातर इंटरनेट दोस्त बनावटी होते हैं. वो कभी भी आपकी मुसीबत में काम नहीं आएंगे. मैक्स सलाह देते हैं कि तजुर्बा और भावनाएं ही आपकी सबसे बड़ी पूंजी हैं. वे यह भी कहते हैं कि आज शानदार कारें और अच्छे मकान, कामयाबी के पैमाने नहीं रह गए हैं.
चैरिटा जॉनसन लिखती हैं कि बीस की उम्र में अपनी कमज़ोरियों को जानना सबसे ज़रूरी है. दुनिया आपकी कमज़ोरी जानेगी तो फौरन उसका फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगी. बेहतर है कि अपनी कमज़ोरियों को समझिए और उनसे छुटकारा पाने की कोशिश कीजिए.
यूरी क्रुमैन सलाह देते हैं कि कामयाबी के लिए शॉर्टकट की तलाश करना छोड़ दीजिए, क्योंकि कोई भी रातों-रात कामयाब नहीं बनता. आपको अपनी जगह बनाने के लिए लगातार धक्का-मुक्की करनी होगी. लोगों को अच्छी कहानी सुनाकर अपना असर छोड़ना होगा. अपनी बात सुनने वालों को सही तरीक़े से समझाना सीखना होगा.
यूरी कहते हैं कि बीस की उम्र में एक और कड़वे सच का सामना करना चाहिए. वो यह कि किसी भी काम में उस्तादी हासिल करने में वक़्त लगता है. ख़ास तौर से तब और जब आप जैसे और भी लोग कोशिश में जुटे हों.
यूरी के मुताबिक़ आपको थोड़े शब्दों में अपनी पूरी बात कहना सीखना चाहिए. क्योंकि लंबी-चौ़ड़ी, घुमावदार कहानी सुनने का वक़्त आज किसी के पास नहीं. तो, आप कम शब्दों में अपनी बात कहें और आगे बढ़ जाएं.
स्टीफ़न पैप सलाह देते हैं कि आप अपनी क्षमताओं, अपनी हदों को समझिए. इससे आपको अपने आवेग पर क़ाबू पाने में मदद मिलती है. आप कम उम्र में ये ट्रिक सीख लेंगे तो आगे चलकर कई मुसीबतों से बच जाएंगे.
पैप लिखते हैं कि वो कई ऐसे लोगों को जानते हैं जो चालीस की उम्र में ये सोचते हैं कि उन्होंने बीस-तीस के दशक में जो मौक़े गंवा दिए, वो अब हासिल कर सकते हैं. ऐसा होता नहीं. आप फिर से जवां नहीं हो सकते.
न्यूरोसाइंस के छात्र निक जॉनसन कहते हैं कि बीस के दशक में यह सीखना सबसे ज़रूरी है कि किस सलाह पर अमल करें. आपको बहुत से लोग बहुत सलाह देंगे. इनमें अक्सर विरोधाभास देखने को मिलेगा. ऐसे में यह सीखना बहुत ज़रूरी है कि कि विरोधाभासी मशविरों में से कौन सी सलाह आपके लिए सही है.
जॉनसन कहते हैं कि आमतौर पर सभी मशविरों में कुछ न कुछ अच्छाई होती है. मगर आपके लिए सबसे अच्छा कौन सा मशविरा होगा, ये चुनने का सलीक़ा आना बहुत ज़रूरी है.
तो ये कुछ बाते हैं जो आप ज़िंदगी के अहम पड़ाव पर सीख लें, तो आगे चलकर ज़िंदगी आपके लिए कम मुश्किल होगी.
(अंग्रेज़ी में मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी कैपिटल पर उपलब्ध है.)
Comments
Post a Comment