घर के छोटे मोटे काम या कभी रसोई में काम करते हुए आपके हाथ में कोई ना कोई कट तो ज़रूर लगा होगा. ये स्वाभाविक भी है. लेकिन क्या कभी किसी काग़ज़ से आपको ये चोट पहुंची है?
अब आप भी हैरान हो रहे होंगे कि भला काग़ज़ से भी कभी हाथ पैर कट सकता है क्या? ज़रा ये सवाल कभी उस शख़्श से पूछिए जिसने फोटो कॉपी की मशीन में पेपर रखते वक्त इस तकलीफ़ को बर्दाश्त किया हो, तो हो सकता है आपको इस सवाल का जवाब मिल जाए.
यह भी हो सकता है कि कभी किसी किताब के पेज पलटते वक़्त आपने भी इसका सामना किया हो और आप ने ध्यान ही ना दिया हो. ऐसा अक्सर होता है, हम छोटी छोटी बातों पर बहुत ज़्यादा ध्यान वैसे भी नहीं देते.
मोटे तौर पर देखा जाए तो काग़ज़ से किसी को नुक़सान नहीं हो सकता. लेकिन ये एक ख़तरनाक हथियार हो सकता है और इससे मिलने वाले ज़ख्म का दर्द और भी भयानक हो सकता है.
काग़ज़ से मिलने वाले ज़ख्मों में इतना दर्द क्यों होता है इस पर साइंस ने कोई गहरी रिसर्च नहीं की है. क्योंकि कोई भी रिसर्चर अपने रिसर्च के सब्जेक्ट, यानी किसी शख़्स को तकलीफ़ देकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहेगा.
अमरीका की कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के स्किन स्पेशलिस्ट डॉ. हेले गोल्डबाख कहते हैं कि इसके लिए हमें अपनी शारीरिक बनावट को ही ज़हन में रखकर किसी नतीजे पर पहुंचना होगा.
हमारे शरीर में कुछ जगहों पर ऐसी नसें होती हैं जो दर्द को ज़्यादा जल्दी और शिद्दत से महसूस करती हैं. अगर काग़ज़ से आपके चेहरे पर, पैर पर, बाज़ू पर या शरीर के किसी और हिस्से पर कट लगता है तो, आप तकलीफ़ महसूस करते हैं.
लेकिन जब यही कट आपके हाथों की उंगलियों पर लगता है तो उसका दर्द आप काफ़ी देर तक महसूस करते हैं. क्योंकि आपकी उंगलियों के पोरों पर जो नसें हैं, वो ज़्यादा नाज़ुक होती हैं और वो दर्द को ज़्यादा जल्दी महसूस करती हैं.
अगर आप चाहें तो ख़ुद भी ये तजुर्बा करके देख सकते हैं. काग़ज़ का एक टुकड़ा लीजिए और उसे ऐसे मोड़िये कि पेपर के दोनों छोर एक साथ आ जाएं. अब इस पेपर को अपने चेहरे या हाथ पर मार कर देखिए. आप फौरन इसकी धार का एहसास करेंगे.
अब यही अमल अपने शरीर के किसी दूसरे हिस्से जैसे कमर, जांघ या पैर पर कर के देखिए. आपको अलग अलग जगह पर पेपर के लगने का कम या ज़्यादा एहसास होगा, क्योंकि शरीर के इन हिस्सो में नसों की बनावट और पेशियों का मोटापन चेहरे के मुक़ाबले अलग होता है.
डॉ.गोल्डबाख कहते हैं कि हम अपने आस-पास की चीज़ों को छू कर ही उसके होने का एहसास कर पाते हैं. ये तब से ही शुरू हो जाता है जब से कोई बच्चा चीज़ों को छूने का क़ाबिल हो जाता है.
इसलिए हमारे हाथों की नसें ज़्यादा नाज़ुक भी होती हैं और चोट लगने पर एहसास भी ज़्यादा होता है. ये एक तरह का सेफ्टी मेकेनिज़्म भी होता है.
मान लीजिए अगर आपके हाथ ने किसी गर्म चीज़ को छुआ है तो हाथ की नसें दिमाग़ को संदेश देती हैं कि इस चीज़ से दूर रहना है. इस तरह आप खुद को महफ़ूज़ कर लेते हैं.
अगर आप चाहें तो गूगल सर्च से भी काग़ज़ से होने वाले नुक़सान के बारे में बहुत सी बातें जान सकते हैं. जैसे, पेपर बहुत तरह के कीटाणुओं और जीवाणुओ का घर भी होते हैं. जैसे ही काग़ज़ से आपके हाथ में चोट लगती है, ये फौरन वहां अपना क़ब्ज़ा फैलाना शुरू कर देते हैं.
हालांकि चोट लगने के साथ ही आपको ये बैक्टीरिया किसी तरह का नुकसान तो नहीं पहुंचाएंगे. लेकिन कुछ ही वक्त के बाद आपको चोट को ठीक करने में दिक्कत ज़रूर देंगे. इलाज के बाद ही इनसे छुटकारा पाया जा सकता है.
देखने में किसी काग़ज़ के किनारे एकदम सपाट लगते हैं. लेकिन अगर इन्हें बड़ा करके देखा जाए तो इनके किनारे आरी जैसे धारदार और ऊबड़-खाबड़ नज़र आते हैं. इसलिए पेपर से कटने पर तकलीफ़ ज़्यादा होती है क्योंकि वो आपकी त्वचा को कई जगह से काट देता है.
वहीं, अगर आपका हाथ छुरी या किसी ब्लेड से कटता है, तो, वो कट एक दम सीधा होता है. उसका घाव जल्दी ठीक भी हो जाता है.
पेपर कट से आपकी स्किन की ऊपरी परत पर ही नुक़सान होता है. जहां महसूस करने वाली नसों का जाल भी गहरा नहीं होता. पेपर आपको गहराई तक पहुंचने वाला ज़ख्म नहीं देते. फिर भी ये कट आसानी से ठीक नहीं होते और दर्द भी होता रहता है. ऐसा क्यों होता है, ये एक पहेली बना हुआ है.
डॉ.गोल्डबाख कहते हैं, "जब गहरी चोट लगती है तो खून बह जाता है और चोट की जगह पर खून सूख कर खुरंट तैयार हो जाता है. इस खुरंट के नीचे खाल नए सिरे से बनने लगती है. जब खाल पूरी तरह से तैयार हो जाती है तो फिर ये ब्लड क्लॉट ख़ुद ही हट जाता है".
लेकिन पेपर कट से आपको ब्लीडिंग नहीं होती है. अलबत्ता खाल कटी रह जाती है. इसलिए वो तकलीफ़ भी ज़्यादा देती है. अगर इस पर कोई पट्टी वगैरह बांध कर नहीं रखा जाता, तो ठीक होने में वक़्त भी ज़्यादा लगता है, और दर्द तो होता ही है.
कोई गहरा ज़ख्म आपको शायद उतनी तकलीफ़ ना दे, लेकिन एक पेपर कट आपको बड़ी तकलीफ़ दे सकता है. क्योंकि काग़ज़ का सिरा आपकी त्वचा पर सिर्फ़ एक जगह कट नहीं लगाता, बल्कि छोटे-छोटे कई ज़ख्म आपको दे जाता है.
लिहाज़ा पेपर पकड़ते वक़्त ख़ास ख़याल रखें. बेख़याली में ये छुपा रूस्तम हथियार आपको बड़ी मुश्किल में डाल सकता है.
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