दिल्ली विधान सभा में आम आदमी पार्टी के 67 विधायकों में से 21 की सदस्यता पर तलवार लटक रही है.
70 सदस्यों वाली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल सरकार के पास पूर्ण बहुमत है लेकिन उनके 21 विधायकों पर 'लाभ के पद' से जुड़े होने के सवाल उठे हैं.
अगर चुनाव आयोग ने इन 21 विधायकों के संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति को गलत ठहरा दिया, तब इन 21 में उप-चुनाव कराए जा सकते हैं.
दरअसल, केजरीवाल मंत्रिमंडल में 7 मंत्रियों के अलावा दिल्ली सरकार ने 13 मार्च, 2015 को एक आदेश के ज़रिए 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया था.
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आम आदमी पार्टी की सरकार की ओर से इस संबध में पारित विधेयक को मंज़ूरी नहीं दी थी.
इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में आप सरकार के इस फ़ैसले को उस समय रद्द कर दिया, जब एक वकील और एक एनजीओ ने इन नियुक्तियों को खारिज करने की जन हित याचिका दायर की.
आगे क्या हो सकता है इस पर कानून विश्लेषक सुभाष कश्यप की राय:
- भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी सांसद या विधायक अगर सरकार के अधीन किसी दूसरे लाभ के पद पर है तो उसे उसकी सदस्यता से वंचित किया जा सकता है.
- अगर इन 21 विधायकों का संसदीय सचिव का पद इस दायरे में पाया गया तो इनकी सदस्यता पर ख़तरा है.
- निर्वाचन आयोग ये तय करके राष्ट्रपति को बताएगा कि क्या इनका पद, लाभ के पद के अन्तर्गत आता है या नहीं.
- अगर फ़ैसला आप पार्टी के ख़िलाफ़ गया तब इन 21 विधायकों को अयोग्य करार कर के इन सभी सीटों को खाली माना जाएगा और यहाँ दोबारा चुनाव की घोषणा होगी.
- आप पार्टी कहती रही है कि इन 21 विधायकों को किसी तरह की आमदनी, सुविधा, गाड़ी, बंगला जैसी सुविधाएं पार्टी नहीं दी जा रही है इसलिए ये लाभ का पद नहीं है.
- हाई कोर्ट से विपरीत फ़ैसला आने के बाद केजरीवाल सरकार सुप्रीम दरवाज़ा दो बार खटखटा सकती है.
- अदालत मामले पर सुनवाई के लिए तैयार होती है या स्टे देती है तब तक ये विधायक बने रह सकेंगे.
- पूर्व में कई अदालती फ़ैसले इस आधार पर हुए कि न सिर्फ़ लाभ का पद बल्कि अगर उस पद पर रह दूसरी सरकारी नियुक्तियां है तब भी उसे लाभ का पद माना जाएगा.
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